Sunday, 5 March 2017

दोस्तो आज पहली बार राजनैतिक विचारधारा के बारे में लिख रहा हूँ। अगर कुछ गलत लिख दिया हो तो अपना छोटा भाई समझ कर क्षमा कर देना।

भारत – एक ऐसा देश जिसने कई चीज़ों के मायनों को नया आयाम दिया है। आधुनिक काल में “सेक्यूलर” शब्द को भी नया आयाम दे दिया गया है। इसका अर्थ अब धर्म निर्पेक्ष होना नहीं रहा वरन्‌ केवल एक खास धर्म की ओर ध्यान देना है। वर्ना क्या कारण है कि कभी किसी “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली या लोहड़ी/बैसाखी या क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़ लगी हुई होती है।

अब माननीय राष्ट्रपति जी भी इफ़्तार पार्टी देने जा रहे हैं? क्या पिछली दुर्गा पूजा पर पार्टी दी थी? दीपावली पर? क्रिसमस भी निकल गया और अभी अप्रैल में ईस्टर भी निकल गया। मुझे तो ध्यान नहीं कि टैक्सपेयर्स (tax payers) के खर्चे पर कोई दावत हुई हो!

जब सिर्फ़ एक धर्म विशेष को ही अपीज़ (appease) करना उद्देश्य है तो मेरे ख्याल से सभी टैक्स आदि भी उसी धर्म विशेष के लोगों से लिए जाने चाहिए, क्यों बाकी लोगों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई किसी एक तबके पर खर्च की जाए।

और यदि सरकारें आदि धर्मनिर्पेक्ष है तो उनको धर्मनिर्पेक्ष वास्तविक मायनों में रहना चाहिए। सरकारी खर्चे पर कोई धर्म संबन्धित कार्य नहीं होने चाहिए, चाहे पूजा-हवन आदि हो या दावत हो या फिर आरक्षण अथवा छात्रवृत्ति (scholarship) हो। सरकार सभी की होती है, किसी धर्म विशेष की नहीं, तो किसी धर्म विशेष पर अधिक ध्यान देना उचित नहीं।
धन्यवाद। Thanks!

Friday, 3 March 2017

मेरी कलम से, इतिहास पढ़ें नहीं रचें भी

है वही सूरमा इस जग में, जो अपनी राह बनाता है।
कोई चलता है पद चिन्हों पर, कोई पद चिन्ह बनाता है।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी एक कविता की ये कुछ पंक्तियाँ मेरे दिमाग में कल से काफी उथल पुथल मचाये हुए हैं। सही ही तो कहा है महाकवि दिनकर जी ने…इस पूरे संसार की अगर जनसँख्या की गणना की जाये तो अरबों खरबों की जनसँख्या होगी लेकिन अगर सफल व्यक्तियों की गणना की जाये तो कुछ मुट्ठी भर लोगों के नाम ही सामने आयेंगे।

हम पैदा होते हैं, स्कूल जाते हैं, दूसरों व्यक्तियों द्वारा रचे इतिहास को बड़े चाव से पढ़ते हैं और गर्व महसूस करते हैं कि हमारी भारत भूमि पर कितने वीर और महापुरुषों ने जन्म लिया है लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि जब आने वाली पीढ़ी आयेगी और इतिहास पढ़ेगी तो क्या आपका भी नाम उस इतिहास में होगा या नहीं ?

शायद नहीं…..क्योंकि हम सिर्फ इतिहास पढ़ते हैं….और इतिहास बनाने वाले वो और ही होते हैं जिनमें जूनून कूट कूट कर भरा होता है, जिनको हारना किसी भी शर्त पर मंजूर नहीं होता।

जरा याद कीजिये अपने पूर्वराष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद जी का बचपन, जब छोटे थे तो खर्चा चलाने के लिए साईकिल पर अख़बार बांटा करते थे। कौन जानता था कि यही बच्चा आगे चलकर मिसाइल मैन बनेगा। ऐसे लोगों के जीवन से ही इतिहास बनता है।

जरा याद कीजिये अरुणिमा सिन्हा को, जिसने एक हादसे में अपने दोनों पैरों की ताकत को गँवा दिया था लेकिन उसके अंदर जूनून था कुछ कर गुजरने का। दोनों पैरों की ताकत गँवा देने के बावजूद अरुणिमा सिन्हा ने सर्वोच्च पर्वतशिखर माउन्ट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की। ऐसे लोगों से सीखिए कि इतिहास का हिस्सा कैसे बना जाता है।

इतिहास पढ़ने वाले तो करोड़ों हैं मेरे दोस्त….आज आप पढ़ते हैं, कल कोई और पढ़ेगा लेकिन इतिहास लिखने वाला कोई कोई ही होता है।

आप भी सफल हो सकते हैं और आप भी कुछ बड़ा कर सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको अपना नजरिया बदलना होगा। अपने अंदर कुछ बड़ा करने का जूनून पैदा करना होगा। खुद पर आत्मविश्वास रखकर दृढ़ संकल्प लेना होगा कि हम भी कुछ बड़ा करेंगे।

याद रखिये, सफल होना उतना आसान नहीं है लेकिन इतिहास गवाह है कि प्रयास करने वालों ने हमेशा सफलता को प्राप्त किया है। कोशिश करते रहिये दोस्तों ताकि आपकी पहचान भीड़ में कहीं खो कर ना रह जाये।

तो मैं स्वयं इस बात का दृढ़ संकल्प लेता हूँ और आप भी मेरे साथ दृढ़ संकल्प लीजिये कि हम भी कुछ ऐसा करेंगे कि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारा नाम भी इतिहास में पढ़े। हम भीड़ का हिस्सा नहीं हैं, वो और हैं जो सिर्फ इतिहास पढ़ते हैं, हम तो इतिहास गढ़ने वालों में से हैं।

अगर आपके दिल से भी ऐसी ही आवाज आये तो मेरे साथ संकल्प लेते हुए नीचे कमेंट बॉक्स में लिख दीजिये कि आज के बाद हम पूरे दिल ओ जान से मेहनत करेंगे और एक नया इतिहास गढ़ेंगे। धन्यवाद!!!!
Thanks.