Sunday 5 March 2017

दोस्तो आज पहली बार राजनैतिक विचारधारा के बारे में लिख रहा हूँ। अगर कुछ गलत लिख दिया हो तो अपना छोटा भाई समझ कर क्षमा कर देना।

भारत – एक ऐसा देश जिसने कई चीज़ों के मायनों को नया आयाम दिया है। आधुनिक काल में “सेक्यूलर” शब्द को भी नया आयाम दे दिया गया है। इसका अर्थ अब धर्म निर्पेक्ष होना नहीं रहा वरन्‌ केवल एक खास धर्म की ओर ध्यान देना है। वर्ना क्या कारण है कि कभी किसी “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली या लोहड़ी/बैसाखी या क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़ लगी हुई होती है।

अब माननीय राष्ट्रपति जी भी इफ़्तार पार्टी देने जा रहे हैं? क्या पिछली दुर्गा पूजा पर पार्टी दी थी? दीपावली पर? क्रिसमस भी निकल गया और अभी अप्रैल में ईस्टर भी निकल गया। मुझे तो ध्यान नहीं कि टैक्सपेयर्स (tax payers) के खर्चे पर कोई दावत हुई हो!

जब सिर्फ़ एक धर्म विशेष को ही अपीज़ (appease) करना उद्देश्य है तो मेरे ख्याल से सभी टैक्स आदि भी उसी धर्म विशेष के लोगों से लिए जाने चाहिए, क्यों बाकी लोगों के खून पसीने की गाढ़ी कमाई किसी एक तबके पर खर्च की जाए।

और यदि सरकारें आदि धर्मनिर्पेक्ष है तो उनको धर्मनिर्पेक्ष वास्तविक मायनों में रहना चाहिए। सरकारी खर्चे पर कोई धर्म संबन्धित कार्य नहीं होने चाहिए, चाहे पूजा-हवन आदि हो या दावत हो या फिर आरक्षण अथवा छात्रवृत्ति (scholarship) हो। सरकार सभी की होती है, किसी धर्म विशेष की नहीं, तो किसी धर्म विशेष पर अधिक ध्यान देना उचित नहीं।
धन्यवाद। Thanks!

Friday 3 March 2017

मेरी कलम से, इतिहास पढ़ें नहीं रचें भी

है वही सूरमा इस जग में, जो अपनी राह बनाता है।
कोई चलता है पद चिन्हों पर, कोई पद चिन्ह बनाता है।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी एक कविता की ये कुछ पंक्तियाँ मेरे दिमाग में कल से काफी उथल पुथल मचाये हुए हैं। सही ही तो कहा है महाकवि दिनकर जी ने…इस पूरे संसार की अगर जनसँख्या की गणना की जाये तो अरबों खरबों की जनसँख्या होगी लेकिन अगर सफल व्यक्तियों की गणना की जाये तो कुछ मुट्ठी भर लोगों के नाम ही सामने आयेंगे।

हम पैदा होते हैं, स्कूल जाते हैं, दूसरों व्यक्तियों द्वारा रचे इतिहास को बड़े चाव से पढ़ते हैं और गर्व महसूस करते हैं कि हमारी भारत भूमि पर कितने वीर और महापुरुषों ने जन्म लिया है लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि जब आने वाली पीढ़ी आयेगी और इतिहास पढ़ेगी तो क्या आपका भी नाम उस इतिहास में होगा या नहीं ?

शायद नहीं…..क्योंकि हम सिर्फ इतिहास पढ़ते हैं….और इतिहास बनाने वाले वो और ही होते हैं जिनमें जूनून कूट कूट कर भरा होता है, जिनको हारना किसी भी शर्त पर मंजूर नहीं होता।

जरा याद कीजिये अपने पूर्वराष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद जी का बचपन, जब छोटे थे तो खर्चा चलाने के लिए साईकिल पर अख़बार बांटा करते थे। कौन जानता था कि यही बच्चा आगे चलकर मिसाइल मैन बनेगा। ऐसे लोगों के जीवन से ही इतिहास बनता है।

जरा याद कीजिये अरुणिमा सिन्हा को, जिसने एक हादसे में अपने दोनों पैरों की ताकत को गँवा दिया था लेकिन उसके अंदर जूनून था कुछ कर गुजरने का। दोनों पैरों की ताकत गँवा देने के बावजूद अरुणिमा सिन्हा ने सर्वोच्च पर्वतशिखर माउन्ट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की। ऐसे लोगों से सीखिए कि इतिहास का हिस्सा कैसे बना जाता है।

इतिहास पढ़ने वाले तो करोड़ों हैं मेरे दोस्त….आज आप पढ़ते हैं, कल कोई और पढ़ेगा लेकिन इतिहास लिखने वाला कोई कोई ही होता है।

आप भी सफल हो सकते हैं और आप भी कुछ बड़ा कर सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको अपना नजरिया बदलना होगा। अपने अंदर कुछ बड़ा करने का जूनून पैदा करना होगा। खुद पर आत्मविश्वास रखकर दृढ़ संकल्प लेना होगा कि हम भी कुछ बड़ा करेंगे।

याद रखिये, सफल होना उतना आसान नहीं है लेकिन इतिहास गवाह है कि प्रयास करने वालों ने हमेशा सफलता को प्राप्त किया है। कोशिश करते रहिये दोस्तों ताकि आपकी पहचान भीड़ में कहीं खो कर ना रह जाये।

तो मैं स्वयं इस बात का दृढ़ संकल्प लेता हूँ और आप भी मेरे साथ दृढ़ संकल्प लीजिये कि हम भी कुछ ऐसा करेंगे कि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारा नाम भी इतिहास में पढ़े। हम भीड़ का हिस्सा नहीं हैं, वो और हैं जो सिर्फ इतिहास पढ़ते हैं, हम तो इतिहास गढ़ने वालों में से हैं।

अगर आपके दिल से भी ऐसी ही आवाज आये तो मेरे साथ संकल्प लेते हुए नीचे कमेंट बॉक्स में लिख दीजिये कि आज के बाद हम पूरे दिल ओ जान से मेहनत करेंगे और एक नया इतिहास गढ़ेंगे। धन्यवाद!!!!
Thanks.

Friday 24 February 2017

मुसीबत लङो, ना कि डरो

मुसीबते हमारी ज़िंदगी की एक सच्चाई है। कोई इस बात को समझ लेता है तो कोई पूरी ज़िंदगी इसका रोना रोता है। ज़िंदगी के हर मोड़ पर हमारा सामना मुसीबतों(problems) से होता है. इसके बिना ज़िंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती।
अक्सर हमारे सामने मुसीबते आती है तो तो हम उनके सामने पस्त हो जाते है। उस समय हमे कुछ समझ नहीं आता की क्या सही है और क्या गलत। हर व्यक्ति का परिस्थितियो को देखने का नज़रिया अलग अलग होता है। कई बार हमारी ज़िंदगी मे मुसीबतों का पहाड़ टूट पढ़ता है। उस कठिन समय मे कुछ लोग टूट जाते है तो कुछ संभाल जाते है।
मनोविज्ञान के अनुसार इंसान किसी भी problem को दो तरीको से देखता है;
1 problem पर focus करके(problem focus peoples)
2 solution पर focus करके(solution focus peoples)
Problem focus peoples अक्सर मुसीबतों मे ढेर हो जाते है। इस तरीके के इंसान किसी भी मुसीबत मे उसके हल के बजाये उस मुसीबत के बारे मे ज्यादा सोचते है। वही दूसरी ओर solution focus peoples मुसीबतों मे उसके हल के बारे मे ज्यादा सोचते है। इस तरह के इंसान मुसीबतों का डट के सामना करते है।

दोस्तो आज मै आपके साथ एक महान solution focus इंसान की कहानी शेयर करने जा रहा हु जो आपको किसी भी मुसीबत से लड़ने के लिए प्रोत्साहित (motivate) करेगी। दोस्तो आपने नेपोलियन बोनापार्ट (napoleon Bonaparte) का नाम तो सुना ही होगा। जी हा वही नापोलियन बोनापार्ट जो फ़्रांस के एक महान निडर और साहसी शासक थे जिनके जीवन मे असंभव नाम का कोई शब्द नहीं था। इतिहास में नेपोलियन को विश्व के सबसे महान और अजय सेनापतियों में से एक गिना जाता है। वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से माने जाते थे । उसके सामने कोई रुक नहीं पाता था।
नेपोलियन के बुलंद होसलों की कहानी- a motivational story
नेपोलियन अक्सर जोखिम (risky) भरे काम किया करते थे। एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढे। सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करने असंभव था। उसकी सेना मे अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। फिर भी उसने अपनी सेना को चढ़ाई का आदेश दिया। पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोले की क्यो मरना चाहते हो। यहा जितने भी लोग आये है वो मुह की खाकर यही रहे गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापिस चले जाओ। उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हो गया और झट से हीरो का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मै जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना। उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए। ‘ जो करने या मरने ‘ और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।
आज सचिन तेंदुलकर (sachin tendulkar) को इसलिए क्रिकेट (cricket) का भगवान कहा जाता है क्योकि उन्होने जरूरत के समय ही अपना शानदार खेल दिखाया और भारतीय टीम को मुसीबतों से उभारा। ऐसा नहीं है कि यह मुसीबते हम जैसे लोगो के सामने ही आती है, भगवान राम के सामने भी मुसीबते आयी है। विवाह के बाद, वनवास की मुसीबत। उन्होने सभी मुसीबतों का सामना आदर्श तरीके से किया। तभी वो मर्यादा पुरषोतम कहलाये जाते है। मुसीबते ही हमें आदर्श बनाती है।

अंत मे एक बात हमेशा याद रखिये;
जिंदगी में मुसीबते चाय के कप में जमी मलाई की तरह है,
और कामयाब वो लोग हैं जिन्हे फूँक मार के मलाई को साइड कर चाय पीना आता है

धन्यवाद। Thanks.

Tuesday 21 February 2017

आदर्श शिक्षक बनो, न कि केवल पुस्तक पढाओ

Be An Effective Teacher, Be Great Creator

आदर्श शिक्षक नये समाज की नींव रखने वाला जनक व परंपराओं को निभाने वाला महान इंसान होता है।
      यदि एक शिक्षक अपनी काबिलियत के हिसाब से समाज में बदलाव नहीं ला सक रहा है । तब उसका मतलब है कि वह एक आदर्श शिक्षक नहीं हैं।

आदर्श शिक्षक बनने के लिये एक शिक्षक को हमेशा इन बातों का ध्यान रखना चाहिये।  
         प्रत्येक विद्यार्थी इतना क्षमतावान न हो सके, यदि एक आदर्श शिक्षक खुद को विद्यार्थी के साथ इस तरह का रिस्ता कायम न कर सके।

एक अच्छा शिक्षक एक विद्यार्थी का सबसे अच्छा दोस्त, सबसे अच्छा सलाहकार, पिता तुल्य और सबसे अच्छा आदर्श होता है।
क्षात्र को अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में जब तक वह अध्ययनरत रहता है अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

इन मुश्किलों को आसानी में आसान तरीके से परिवर्तित कर देना वाला शिक्षक ही उस छात्र या छात्रा के लिये आदर्श समझा जाता है।

ज्यादातर छात्र स्कूल या कॉलेज में उसी शिक्षक को अपना आदर्श मानते या समझते हैं जिसके अंदर नीचे दी जा रही है आदतों का भण्डार होता है।

एक आदर्श शिक्षक बनने के लिए एक शिक्षक में निम्न गुणों का होना अत्यावष्यक है, जो निम्नानुसार है-

1 आदर्श शिक्षक का व्यक्त्वि –

पर्सनॉलिटी ग्रूमिंग या व्यक्त्वि का निखार होना शिक्षक के लिए हमेशा आवश्यक है ।

‘‘फर्स्ट इम्प्रेशन इज दि लास्ट इम्प्रेशन ‘‘ वाली कहावत यहाँ यथार्थ सत्य साबित होते हुये प्रतीत होती है।
            शिक्षक के क्लास में प्रविष्ट हाते ही छात्रों को जो चीज सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, वह है शिक्षक का पहनावा।
ज्यादातार स्पेशल दिखने के लिए शिक्षकों को फॉर्मल ड्रेस या ऑक्सफॉर्ड ड्रेसिंग सेंस ही यूज करना चाहिए।
पैरों में जूते व कमर की बेल्ट तक ऑसफॉर्ड ही होने चाहिये।
याद रखिये कि आपकी शर्ट का हिस्सा हमेशा पेंट में टक-इन होना चाहिए।
चेहरा हमेशा खिलता हुआ होना चाहिए।
कुछ शिक्षक थके-हारे और बोरियत सा चेहरा लेकर अक्सर क्लास में प्रवेश करते हैं जिसकी वजह से वे हमेशा नकारात्मक ऊर्जा का प्रादुर्भाव करते है और वे छात्रों के आदर्श नहीं हो पाते हैं ।

इसलिए आदर्श शिक्षकों के व्यक्त्वि का पहला गुण है- पर्सनालिटि डबल्पमेंट।

2 छात्रों के साथ बात करने का लहजा –
      कुछ शिक्षक बल्कि ज्यादातर शिक्षक अक्सर अपने चहेरे पर क्रोध या चेहरे को भावना – शून्य रखते है।
जिसके कारण छात्र कभी भी अपने आपको शिक्षक के साथ सहज नहीं बना पाते हैं।
उनके मन में अंकित कई महत्वपूर्ण प्रश्न बाहर नहीं आ पाते हैं। और परिणाम अंततः यही निकलता है कि छात्र उस शिक्षक के विषय को गहराई से लेना भी तनावग्रस्त समझते हैं।

       इसलिए अपने छात्रों से बात करते समय या जब भी शिक्षक क्लास के अंदर आये चेहरे पर हमेशा खिलती हुयी- मनमोहक मुस्कान होनी चाहिए जिसका छात्रों पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़े।

3 छात्रों को कभी भी अपमानित नहीं करना चाहिए-

    यदि आप एक आदर्श शिक्षक है या आप चाहते हैं कि आपके छात्र आपको अपना आदर्श मानें या समझें, तो हमेशा एक बात याद रखनी चाहिए कि हमें उन्हें कभी भी अपमानित महसूस नहीं करानी चाहिए।
छात्रों के बीच एक छात्र को अपमानित करने से अक्सर वह शिक्षक उस छात्र के ह्रदय में अपने लिए नफरत समेंटता है जिसके परिणामस्वरूप, वह शिक्षक उस विद्यार्थी का मनोबल-हरण करता है।
             वह छात्र खुद को निर्बल समझता चला जाता है और अपने ह्रदय में हमेशा वह उस शिक्षक से नफरत करता है ।
       वह छात्र अक्सर उस विषय से भी नफरत करने लगता है जिसे वह शिक्षक पढ़ाता है ।
साथ ही, वह छात्र खुद को हीन समझ कर मस्तिष्क से कमजोर होता चला जाता है।
     शिक्षक का यह गुण कोई गुण नहीं अपितु यह उसकी बुराई है।

4 आदर्श शिक्षक को हमेशा अपने छात्रों को प्रेरित करते रहना चाहिए-
कई बार होता है कि छात्र अपना कार्य समय पर पूरा कर सकने में असमर्थ होते हैं और शिक्षक द्वारा उन्हें कक्षा में अपमानित महसूस कराया जाता है।
        जिसकी बजह से छात्र खुद के अंदर नकारात्मकता को महसूस करता है।
वजाह इसके , शिक्षक को अक्सर ही ” यू कैन डू इट “ , “ ट्राई इट “ , “ आप इसे कर सकते हो “, “ एक बार कोशिश करे “ जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ।
            इससे छात्र के अंदर कभी भी नकारात्मक सोच नहीं उभरती है बल्कि वह खुद उस छात्र के लिए इज्जत पाता है और उसी शिक्षक को अपना आदर्श समझने लगता है।

5 आदर्श शिक्षक एक सच्चा दोस्त भी होता है-

      एक आदर्श शिक्षक हमेशा अपने छात्रों का सच्चा दोस्त भी होता है।
आदर्श शिक्षकों के गुणों में यह बात अक्सर सम्मिलित की जानी चाहिए।
      शिक्षक कोई डरावना पशु या कहानियों का भयावह दैत्य नहीं होता है।
वह हमेशा अपने छात्रों के प्रति सच्चा और समझदार होता है।
वह हमेशा अपने छात्रों के प्रति सच्चा और समझदार होता है।

शिक्षक को ऐसा होना चाहिए कि छात्र हमेशा उससे अपनी समस्याओं व अपनी दिली बातें शेयर करने में न झिझकें और शिक्षक को भी हमेशा अपने छात्रों की मद्द करते रहना चाहिए।

6 हॉमवर्क देते समय बरती गयीं सावधानियाँ –

         अपने छात्रों को वही और उतना ही हॉमवर्क देना चाहिए जितना कि वो उसे घर से याद करके ला सकें।
अक्सर, अनेक टीचर्स अपने छात्रों को अधिक और ज्यादा से ज्यादा हॉमवर्क दे देते हैं, फलतः विद्यार्थी उसे समय पर पूरा कर सकने में असमर्थ होते हैं और खुद को तनावग्रस्त महसूस करते हैं। 

इसका आसान उपाय है प्रत्येक छात्र को उसकी क्षमता के आंकलन के हिसाब से ही हॉमवर्क कम्प्लीट करने को कहना चाहिए।

7 आदर्श शिक्षक समय के पाबंद होते हैं –
    सारे गुणों में जो बात सर्बाधिक मायने रखती है, वह है – समय की पाबंदी ।
एक शिक्षक को अपनी क्लास में कभी भी देर से नहीं आना चाहिए।
इससे शिक्षक कभी भी छात्रों का आदर्श नहीं बन सकता ।

इन बातों का अनुसरण कर कोई कोई भी शिक्षक एक आदर्श शिक्षक बन सकता है।

शिक्षक को हमेशा इन बातों का ख्याल चाहिए व उसके छात्रों को हर जरूरत से भी अनजान नहीं होना चाहिए।
Thank You.
राजेन्द्रा चौधरी RAJENDRA B. CHOUDHARY
9461353085:9799853085(branchraj.sbet@gmail.com)

Sunday 19 February 2017

Written exam is most important

बेहतर समरी / सारांश कैसे लिखे- बहुमूल्य सुझाव ।

संक्षिप्त विवरण कहें, सारांश या फिर समरी । स्क्रिप्ट राइटिंग हो, हमारे स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई हो, पटकथा हो, आम लेखक हों, फिल्मी जगत के लेखक हों, छात्र-छात्राओं और लेखकों का कोई जरूरी असाईनमेंट हो, हर किसी को समरी या संक्षिप्त विवरण की जरूरत होती है।

जहाँ भी लिखने का कार्य होता है वहाँ संक्षिप्त में विवरण लिखने की आवश्यकता होना अति महत्वपूर्ण होता है।
ज्यादातर लोगों को स्टोरी, लेख या मैसेज को संक्षिप्त करने में या फिर बेहतर ढंग से संक्षिप्त करने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है।
इस लेख में नीचे बताई गयीं महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखते हुये हम किसी भी मैसेज, स्टोरी या महत्वपूर्ण सूचनाओं की संक्षिप्त विधि तैयार कर सकते है।

बेहतर समरी लिखने के लिए इन नियमों का पालन करें ।

लेख को सरसरी नजर से पढ़े –

सर्वप्रथम पूरे लेख को सरसरी नजर से पढ़े।
सम्पूर्ण हैडिंग्स और सव-हैडिंग्स को ध्यान में रखते हुये यह जानने की कोशिश करें कि आखिर लेख के माध्यम से, लेखक हमें क्या संदेश पहुँचाना चाहता है।
लेखक के दिमाग और सोच के अनुसार उसके लेख को पढ़ने की कोशिश करें । यह साचे कि लेखक इस लेख के माध्यम से क्या कहाना चाह रहा है।

प्रश्नवाचक शब्दों का उपयोग करें

आप बुक का पाठ कोई आर्टिकल या और भी कोई अन्य लेख पढ़ रहे हैं जिसकी आपको समरी लिखनी है।
तब आप क्या, कैसे, क्यों , कब, किसलिए, किसने, इन प्रश्नवाचक शब्दों का उपयोग करें
ये आपको एक बेहतर समरी लिखने में मद्द करेंगें
आपने जो पढ़ा उसमें क्या हो रहा है ?
कौन क्या कर रहा है ?
किसने किससे क्या कहा ? आदि प्रश्न करें

लेख हाईलाइट करें और नोट्स बनायें-

समरी हमेशा संक्षिप्त रूप में होनी चाहिए तथा संक्षिप्त रूप देते समय महत्वपूर्ण सूचनाओं को हाईलाइट करें और नोट्स बनाना आरंभ करें। ध्यान रखें कि ऐसा करते वक्त जरूरी सूचनायें नहीं छूटनी चाहिए।

खुद के शब्दों में लिखें –

ज्यादातर व एक अच्छी समरी लिखते समय इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि सही एवं स्वयं के शब्दों का ही चयन करें।
यह बेहतर समरी तैयार करने का बेहतर तरीका है। अतएव जो भी बिंदु- विशेष आप लिखना चाहते हो वह सब अपने शब्दों में होना ज्यादा अनिवार्य है।
परंतु इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कुछ भी ऐसी जानकारी आप अपने आप से न जोड़े जो लेख में नहीं है या जिसका संबंध नहीं है।

अधूरी जानकारी न लिखें –

हैडिंग्स या फिर सब हैडिंग्स का चुनाब करते समय यह खास ख्याल रखना चाहिए कि कहीं कुछ महत्वपूर्ण जानकारी छूट तो नहीं रही है। संक्षिप्त रूप प्रदान करते समय कई बार हमसे यह गलतियाँ हो जाती हैं कि हम समरी छोटा करने के चक्कर में महत्वपूर्ण जानकारियाँ तक छोड़ देते है।

समरी की लंबाई-

समरी लिखते समय अक्सर यह सवाल मन में आता है कि समरी कितनी बड़ी लिखी जाये। आपका जो वास्तविक लेख है उसकी लगभग 1/4 लंबाई तक आप समरी लिखें । यह लंबाई किसी भी प्रकार की समरी लिखने के लिए उचित बताई जाती है।
कई परिक्षाओं में प्रश्न -पत्र में ही यह स्पष्ट किया होता है कि आपको समरी कितने शब्दों में लिखनी है तब आप उसके अनुसार लिखें।

उचित व अनुचित का चयन करें –

हमेशा वही लिखें जो मैसेज के लिए उचित जानकारी रखता हो। अनुचित का चुनाव कतई न करें। यह आपकी संक्षिप्त जानकारी को गड़बड़ा सकता है।
अपनी तरफ से कोई संदेश न जोड़े, जो आपके लेख में दिया गया है उसके अनुसार ही लिखें।

बेहतर समरी लिखने के लिए ध्यान में रखने योग्य बातें -?

संक्षिप्त विसरण हमेशा मैसेज से मेल खाता हुआ हो।
स्वयं के शब्दों में लिखा गया हो।
खुद की कमेंट्स या विवरण कभी न लिखें
मैसेज को हमेशा संक्षिप्त रूप में लिखें।
महत्वपूर्ण बिंदुओं का चुनाव ध्यानपूर्वक करें।
अधूरी जानकारी न लिखें।

इन बातों को ध्यान में रखते हुये आप उचित एवं अच्छा सारांश अपने शब्दों में लिख सकते हो।
  धन्यवाद। THANK YOU.

Saturday 18 February 2017

Be hopeful guardian

अभिभावकों से राजेन्द्रा चौधरी की छोटी सी अपील

आप सोच रहे होंगे कि हमारे माता-पिता हमें सब से अधिक प्यार करते हैं फिर हमारे माता पिता बच्चों के दुश्मन कैसे बन जाते हैं ?
यह बात सच है कि हमारे माता-पिता हमारा सब से अधिक ध्यान रखते हैं, सबसे अधिक प्यार करते हैं ।

उनके लिए हम सब कुछ होते हैं पर यह भी सच है कि जाने अनजाने में हमारे माता-पिता ही हमारे सबसे बड़े दुश्मन बन जाते हैं। यहाँ पर कुछ तत्वों से यह आपको पता चल जायेगा।

1 – माता पिता बच्चों के दुश्मन कैसे बन जाते हैं ?

माता पिता कई बार इस बात को नजर-अंदाज कर देते हैं कि वे अपने बच्चों के सामने कैसा व्यवहार करते हैं ।

अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए माता पिता उन्हें बेहतर स्कूल में पढ़ाते हैं। कॉचिंग आदि भी लगबाते हैं।
पर अधिकतर बच्चे अपने माता-पिता को देखकर ही सीखते हैं।

बच्चों में जो संस्कार होते हैं, उनका पूरे का पूरा श्रेय व दोष माता-पिता को ही जाता है । माता-पिता अपने बच्चों के सामने आपस में व दूसरे लोगों से कैसे बात करते हैं।

उनके सामने क्या-क्या करते हैं इन सबको देखते ही बच्चे बड़े होते है। और अधिकतर माता – पिता इस बात की परवा नहीं करते हैं कि वे अपने बच्चों के सामने क्या बोल रहे हैं और कैसा व्यवहार कर रहे हैं।

2 –  माता पिता बच्चों के दुश्मन कैसे बन जाते हैं ?

जरूरत से ज्यादा केयर करना

मता पिता अपने बच्चों को ठीक से बड़ा नहीं होने देते हैं, हमने अक्सर देखा है हमारे भारत देश में माता पिता अपने बच्चों के बहुत से काम खुद ही कर देते हैं ।

उदाहरण के तौर पर अधिकतर बच्चे कॉलेज में तक पहुँच जाते हैं लेकिन उनका खुद का कोई बैंक खाता नहीं होता है। उन्हें बैंक से पैसे निकालना, जमा करना आदि पता ही नहीं होता है। क्योंकि उनके ये सारे काम उनके माता पिता ही कर देते हैं ।
जरा सा कोई काम देखा जिसमें थोड़ा सा भी रिस्क हो या काम थोड़ा मुश्किल हो, तो माता पिता उस काम को अपने बच्चों को नहीं करने देते है । और ऐसा करके माता पिता अपने बच्चों को कमजोर बना रहे होते है।

उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि माता पिता हर जगह और हर वक्त अपने बच्चों की मद्द करने के लिए उपस्थित नहीं हो सकते है। इसलिए यह बेहतर है कि उनके काम उन्हें करके न दें बल्कि उन्हें काम करना सीखायें।
दबंग फिल्म से सीखें माता पिता और बच्चों का तालमेल

3 – माता पिता बच्चों के दुश्मन कैसे बन जाते हैं ?

जब उन्हें प्यार की जरूरत होती है तब हम उन्हें डांटते है।
जब कोई बच्चा कुछ भी गलत करता है या कहें कि पहली बार कुछ गलत करता है। तब वह अंदर से डरा हुआ होता है। उसे अपनी गलती का एहसास रहता है, ऐसे में जब वह घर पर आता है। तब उसे डांट पड़ती है ।

और उसे समझने या समझाने की जगह उसे डांटा या पीटा जाता है। अब अगली बार यह होगा कि उससे कोई गलती हुई तो वह अपनी गलती किसी को नहीं बतायेगा । वह उसे छुपाने की कोशिश करेगा। और हो सकता है कि इस कारण वह कोई बड़ी परेशानी में आ जाये।
उदाहरण के तौर पर किसी लड़की ने कोई छोटी पूरी गलती की और उसके लिए उसे बहुत ज्यादा डांटा या पीटा जाता है। उससे सब नाराज रहते हैं, वह अपने अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा दुखी व डरी हुई होती है

और इस दौरान जब कोई बाहर वाला उससे प्यार से बात करता है। तब वह उस पराये को अपना समझने लगती है। और घरवालो से दूरी बनाने लगती है। और फिर आगे उससे और बड़ी गलती करने का खतरा बन जाता है।

4 – माता पिता बच्चों के दुश्मन कैसे बन जाते हैं ?

बच्चों को समझने और समझाने की जगह माता पिता अक्सर यह समझ लेते हैं कि उनका बच्चा उनकी बात नहीं सुनता है।
माता पिता अपने बच्चों को कुछ काम करने को कहते हैं । परंतु जब बच्चों वह नहीं करते हैं जैसा उनके माता पिता चाहते हैं तो माता पिता और बच्चों के बीच लड़ाई झगड़े होने लगते हैं ।
अक्सर माता पिता और बच्चों में इसी बात को लेकर झगड़े होते हैं कि बच्चे वह नहीं करते हैं जैसा उनके माता पिता चाहते हैं और माता पिता की भी बच्चों के प्रति यही शिकायत होती है कि उनके बच्चे उनका कहना नहीं मानते हैं।
इसके लिए नीचे लिखे लेख को ध्यान से पढ़े।

माता पिता को यह जनाना जरूरी है कि वह उनके बच्चे उनका कहना क्यों नहीं मानते हैं।
मान लेते हैं माता पिता ने अपने बच्चों से कुछ करने को कहा मगर बच्चों ने वह नहीं किया ।
तब यह हो सकता हैं कि
1 माता पिता ने जो कहा बच्चो ने उनकी बात सुनी ही न हो । जिसका कारण हो सकता है कि वे किसी महत्वपूर्ण काम में लगे हो या किसी बात के बारे में सोच रहे हों जिस कारण वे माता पिता की बात न सुन पाया हो। अब जब बच्चों ने बात सुनी ही न हो तब वे वह कर ही नहीं सकते जैसे उनके माता पिता ने उनसे कहा है।
2 दूसरी बात यह हो सकती है कि बच्चों ने माता पिता की बात तो सुनी हो परंतु उन्हें समझ में नहीं आया हो जो माता पिता ने उनसे कहा हो।
और अब जब उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आया है तो वे उस काम को करेंगे ही नहीं जो उनके माता पिता ने उनसे कहा हो।
3 तीसरी बात यह भी हो सकती है कि बच्चे ने माता पिता की बात सुनी भी और समझी भी है। लेकिन उसने वह नहीं किया जो उसके माता पिता उससे चाहते थे। हो सकता है कि बच्चा जो कर रहा है वह उसे उससे बेहतर लगता हो जो उसके माता पिता उससे करने को कह रहे हों।

यह ध्यान देने वाली बात है कि सुनना, समझना और समझ गया तीनों बहुत ही अलग हैं। माता पिता ने बच्चों से कुछ कहा हो और उन्होने वैसा नहीं किया जैसा माता पिता चाहते हैं तो माता पिता बिना यह सोचे की उनके बच्चों ने उनकी बात सुनी और समझी है कि नहीं यह जाने बिना ही यह समझ बैठते हैं कि उनके बच्चे उनकी बात नहीं मानते है।
इसलिए माता – पिता को यह समझना महत्वपूर्ण है कि बच्चे वह क्यों नहीं करते जो उनके माता पिता उनसे करने को कहते हैं ।

5 माता पिता बच्चों के दुश्मन कैसे बन जाते हैं ?

बच्चों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करना

जो बच्चे स्कूल या कॉलेज के दौरान पढ़ने में तेज होते हैं । उनके माता पिता उन पर अधिक विश्वास कर लेते है और यह सोचते हैं कि उनके बच्चे कोई गलति नहीं करेंगें या फिर उनके बच्चे अधिक समझदार हैं । और उन्हें हद से ज्यादा आजादी दे देते हैं जिसके चलते बच्चे कई ऐसी गलतियाँ कर देते है । जिनके चलते माता पिता व बच्चे को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

माता पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के परिक्षा में अच्छे परिणाम आने का मतलब यह नहीं है कि वे बहुत ज्यादा समझदार है। व उनके बच्चे कोई गलति नहीं करेंगें।

Thank you.